Friday, January 1, 2010
नव अंकुर, नवगीत और है नवजीवन का ये खुमार
जैसे नयी सुबह की किरनों से हो अंबर का श्रंगार
बीते कल की बात पुरानी
वह तो था एक ठहरा पानी
दिल की टकसालों के सिक्कों
से अब करेंगे हम व्यापार
नव अंकुर, नव गीत----
पानी जैसा रूप सुबह का
शाम चांदनी ताज पे छाई
फूल से खुशबू, तितली के रंग
कली से अंगड़ाई उधार
नव अंकुर, नवगीत----
हरी घास पे ओस बिछी है
सरसों भी लहकी लहकी है
ऐसे आलम में दो हजार दस
लाया भर बाहों में प्यार
नव अंकुर, नवगीत-------
नव वर्ष के लिए में अपना सबसे प्यारा गीत आपको प्रेषित करता हूं। उम्मीद है आपको अच्छा लगेगा।
दीपक शर्मा, अखबारनवीस
98370-17406
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3 comments:
बहुत अच्छा है दीपक जी। आपको बधाइ। नव वषर् की भी और कविता लिखने की भी।
बहुत अच्छा है दीपक जी। आपको बधाइ। नव वषर् की भी और कविता लिखने की भी।
बहुत अच्छा है दीपक जी। आपको बधाइ। नव वषर् की भी और कविता लिखने की भी।
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