Monday, October 12, 2009





अलीगढ़ का ट्रैफिक सिग्नल

....परिवर्तन हमेशा आसान नहीं होता। जिसके पास में अधिकार होते हैं वह अपनी इच्छा शक्ति के बल पर परिवर्तन का अगुवा बन सकता है। ऐसा ही कर दिखाया है अलीगढ़ के एसएसपी असीम अऱुण ने। शहर की लाइलाज बन चुकी यातायात व्यवस्था को काफी हद तक पटरी पर लाने का श्रेय उन्हें दिया जा सकता है।
...लेकिन इस परिवर्तन को पवन के वर्मा का ग्रेट इंडियन मिडल क्लास किस तरह देखता है, इसका एक नजारा मैं आपको बताना चाहूंगा।..

आगरा से एक दिन की छुट्टी लेकर मैं अलीगढ़ अपने घर गया था। माल गोदाम तिरहा (वह स्थान जहां पर दिन में जाम लगना अनिवार्य स्थिति मानी जाती है।)बिल्कुल नोएडा के किसी चौराहे की तरह दिखाई दिया। इलैक्ट्रानिक ट्रैफिक सिग्नल बेहतरीन तरीके से काम कर कर रहे थे। मैं कुछ देर नजारा देखने के इरादे से किनारे की मस्जिद के पास चाय की दुकान पर खड़ा हो गया। तभी....एक बाइक पर एक व्यक्ति और उसकी बुर्कानशीं पत्नी रेड लाइट पर रुके। पत्नी बोली रुक क्यों गए। पति ने कहा, रेड लाइट हो गई है। पत्नी विस्मय के साथ..... तो क्या देहाती भी तमीजदार हो गए हैं।
....महिला का यह संबोधन ही परिवर्तन की हवा का अहसास करा देता है। यह सच है कि अभी भी मालगोदाम तिराहे पर रेड लाइट देखकर बाइक रोकने की स्वतः इच्छा नहीं है, लेकिन व्यवस्था बनाने के लिए बल का अंकुश भी जरूरी होता है। महिला की टिप्पणी से पता चलता है अलीगढ़ की जीवन शैली के बारे में सामान्य सोच क्या है। उम्मीद है कि यह जल्द ही बदलेगी