
भगत सिंह का भविष्य
..हमारे एक विचित्र मित्र हैं कवि हरीश बेताब। जब नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे तो उनके संचार मंत्री सुखराम आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में फंस गए। उस समय उन्होंने एक कविता लिखी थी
..कल का भगत सिंह बैठा भूखे ही दिन काट रहा है
...राजनीति के सुखरामों का कुत्ता रबड़ी चाट रहा है
पंक्तियां आज भी प्रासंगिक हैं। सुखरामों के नाम भले ही बदल गए हों, लेकिन उनका कार्य और हैसियत में कोई बदलाव नहीं आया है।
इसी तरह माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव ने एक किताब लिखी, जिसका नाम था अधूरा ख्वाब। इस किताब की जिल्द के सबसे पिछले हिस्से पर लिखा था कि इस देश के अंदर भगत सिंह को फांसी लगती है और महात्मा गांधी मौन रहते हैं।
...सवाल उठाता है कि भगत सिंह एक नाम न होकर विचार, आंदोलन और एक किरदार है। तो क्या यह राष्ट्रवादी आंदोलन के समय उपेक्षित किया गया था। क्या आज भी यह राजनीति के सुखरामों से कमतर ही रहा है। क्या आज के सिस्टम में भगत सिंह और उसके विचारों की कोई जगह नहीं है। क्या आजाद देश के अंदर देश के लिए खुद को देश भक्त साबित कर पाना बहुत मुशकिल है।
...और क्या यह सवाल अनुत्तरित ही रहेंगे। अगर ऐसा है तो क्या होगा भगत सिंह का भविष्य।
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