Thursday, March 11, 2010




अपने ही कठघरे में

......पेशे का दंभ कभी-कभी नुकसानदायक भी साबित होता है। ऐसा ही वाकया कुछ दिनों पहले हुआ। अलीगढ़ बन्ना देवी चर्च के सामने एक परिचित के आफिस पर बैठे हुए निठल्ला चिंतन चल रहा था। इस बीच सड़क पर थ्री व्हीलर के ब्रेक लगने की आवाज आई तो उस ओर ध्यान गया। देखा कि एक व्यक्ति सड़क पर गिरा पड़ा था। थ्री व्हीलर वाला इधर उधर देख कर मौके से खिसक रहा था। मेरा पत्रकारिताबोध जागा। साथ ही दोषी थ्री व्हीलर चालक को दंडित कराने की भावना भी मन में जागी। गिरे हुए व्यक्ति को मौके पर मौजूद लोगों के हवाले कर एक बाइक वाले की सहायता से थ्री व्हीलर का पीछा करने चल पड़ा। आखिरकार नई बस्ती पुलिस चौकी के पास टेम्पो रुकवा लिया। थ्री व्हीलर चालक ने खुद को स्वयंभू तरीके से निर्दोष करार दे दिया। बैठी सवारियों ने भी इसकी पुष्टि की। मैं अपनी बात पर अड़ा रहा और उस पर मौके पर पहुंचने के लिए दबाव बनाने लगा। उसके न नुकर करने पर थाना बन्ना देवी प्रभारी को फोन पर घटनाक्रम से अवगत कराया। इंस्पेक्टर ने सामने ही चौकी पर बैठे सब इंस्पेक्टर को मौके पर पहुंचने के निर्देश दिए। दरोगा थ्री व्हीलर चालक को हड़काते हुए मौके पर ले आए। मैं भी विजय की मुखमुद्रा लिए मौके पर ऐसे पहुंचा जैसे ठाकुर गब्बर को गिरफ्तार करने के बाद आता है। साथी लोग भी मेरी इस सफलता और पुसिल की मौजूदगी को लेकर अर्द्ध उत्साहित थे।
यहां पर सड़क पर गिरे पड़े व्यक्ति को जब थ्री व्हीलर में डालकर अस्पताल ले जाने की बात आई तो पता चला कि वह शराब के नशे में है और बेहोशी की हालत में पहुंच गया है। पूछताछ में यह भी पता चला कि उस शराबी की थ्री व्हीलर से टक्कर भी नहीं हुई। थ्री व्हीलर वाले ने ब्रेक शराबी को बचाने के लिए ही मारे थे।.....लेकिन अब थोड़ी देर हो चुकी थी। बात इंस्पेक्टर तक पहुंच चुकी थी। दरोगा ने कहा थाने तो चलना ही पड़ेगा। अब स्थिति उलट चुकी थी। कुछ देर पहले तक का दोषी अब पूरी तरह निर्दोष साबित हो चुका था। थाने के नाम पर टेम्पो चालक पसीने छोड़ने लगा। मेरी स्थिति भी असहज हो गई। कुछ देर पहले तक का विजय भाव अब अपराध बोध में बदल रहा था। मौके पर मौजूद जन विचार भी धीरे-धीरे पाला बदल रहे थे। थ्री व्हीलर चालक को मैं कसाई नजर आ रहा था। मेरी वजह से उसकी सवारियां भी उतरीं और थाने जाने की नौबत आ गई। ....खैर मैंने दरोगा से कहा कि अब जबकि यह निर्दोष साबित हो चुका है तो उसके साथ न्याय करते हुए छोड़ दिया जाए। दरोगा ने अपील खारिज की और शराबी और थ्री व्हीलर को चालक सहित थाने ले आया। .....मेरे मन के भीतर विचारों का द्वंद जारी था। साथी लोग भी इस घटनाक्रम को लेकर सहज नहीं थे। ...अंत में फैसला किया गया कि थाने पहुंचकर टेम्पो और उसके चालक को छुड़वाया जाए। थाने में पहुंचकर पता चला कि इंस्पेक्टर एक जरूरी विभागीय मीटिंग में गए हुए हैं। इधर टेम्पो वाले को मेरे पहुंचने से और इरादे जानकर थोड़ी रहत पहुंची। इंस्पेक्टर को मोबाइल मिला कर दो मिनट पूरी बात सुनने का निवेदन किया। पूरी बात सुनने के बाद इंस्पेक्टर ने कहा कि ठीक है में टेम्पो चालक को छोड़ने के लिए फोन कर देता हूं।। कुछ देर बाद टेम्पो चालक छोड़ दिया गया। साथियों में घटना की चर्चा रही। मैं सोच रहा था अगर टेम्पो चालक पुलिसिया लहजे के हत्थे चढ़ गया होता तो मैं अपने आप का कैसे सामना करता।

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